कजाकिस्तान ने चुना अब्राहम समझौता: 33 साल से इजरायल से संबंध, अब क्यों हो रहा साझेदारी?

तेल अवीव

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बड़ा ऐलान किया है. उन्होंने कहा कि कजाकिस्तान अब्राहम समझौते में शामिल हो गया है. यह ट्रंप के दूसरे कार्यकाल का पहला ऐसा कदम है. लेकिन सवाल यह है कि आखिर यह समझौता क्या है, कजाकिस्तान क्यों इसमें आ रहा है, और इससे मिडिल ईस्ट या दुनिया में क्या बदलाव आएगा? आइए समझते हैं.
अब्राहम समझौता क्या है?

अब्राहम समझौता ट्रंप के पहले कार्यकाल की बड़ी कामयाबी है. यह 2020 में शुरू हुआ था. इसका नाम अब्राहम से आया है, जो यहूदी, ईसाई और इस्लाम धर्मों के पैगंबर माने जाते हैं. यह समझौता इजरायल और कुछ मुस्लिम देशों के बीच दोस्ती से जुड़ा है. इससे पहले, इजरायल और कई अरब देशों के बीच दुश्मनी थी. लेकिन इस समझौते से वे देश इजरायल को आधिकारिक तौर पर मान्यता देने लगे. दूतावास खोले, व्यापार बढ़ाया, पर्यटन शुरू किया. अभी तक इसमें संयुक्त अरब अमीरात (UAE), बहरीन, मोरक्को और सूडान शामिल हैं. इन देशों ने इजरायल के साथ पूर्ण संबंध बनाए. सूडान इकलौता ऐसा देश है, जिसने दूतावास नहीं खोला. ट्रंप इसे अपनी विदेश नीति की सबसे बड़ी सफलता मानते हैं. लेकिन गाजा युद्ध के बाद यह समझौता थोड़ा ठंडा पड़ गया था. अब ट्रंप इसे फिर से जिंदा करना चाहते हैं.

उन्होंने कहा कि मध्य एशिया का मुस्लिम बहुल देश कजाखस्तान ऐसा पहला देश होगा, जो उनके दूसरे कार्यकाल में अब्राहम अकॉर्ड का हिस्सा बनेगा। ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ पर इस संबंध में पोस्ट करके जानकारी दी। उन्होंने कहा कि मैंने कजाखस्तान के राष्ट्रपति कासम-जोमार्ट तोकायेव से बात की है। इसके अलावा इजरायल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू से भी इस संबंध में बात की है। उन्होंने कहा कि हम दुनिया में शांति स्थापित करना चाहते हैं और उसके लिए ये संबंध अहम हैं। इसी के तहत अब्राहम अकॉर्ड अहम है और सभी इसके साथ जुड़कर शांति एवं समृद्धि को बढ़ावा देना चाहते हैं।

डोनाल्ड ट्रंप का दावा- कुछ और मुसलमान देश हैं लाइन में

डोनाल्ड ट्रंप ने यह दावा भी किया कि अभी इस अकॉर्ड से कुछ और देश भी जुड़ने के लिए कतार में हैं। उन्होंने कहा कि हम जल्दी ही एक सेरेमनी का ऐलान करेंगे, जिसमें कजाखस्तान अब्राहम अकॉर्ड का हिस्सा बनेगा। हमें उम्मीद है कि जल्दी ही दुनिया में एकता, विकास और समृद्धि को बढ़ावा देने के लिए कुछ और देश भी साथ आएंगे। बता दें कि इस अकॉर्ड से सीरिया के भी जुड़ने की संभावनाएं जताई जा रही हैं। यह इजरायल का पड़ोसी देश है और यदि सीरिया साथ आया तो यह बड़ा बदलाव होगा। खासतौर पर मध्य पूर्व एशिया में शांति और स्थिरता के लिहाज से यह अहम होगा। यही नहीं मुस्लिम देशों की एकता के लिए भी यह देखने लायक होगा।

इजरायल के साथ कजाखस्तान के हैं पुराने रिश्ते, अब क्या बदलेगा

बता दें कि कजाखस्तान के पहले से ही इजरायल से रिश्ते रहे हैं। कभी सोवियत संघ का हिस्सा रहे कजाखस्तान ने 1992 में इजरायल के साथ कूटनीतिक संबंध स्थापित किए थे। ट्रंप का मानना है कि मुसलमान देशों को साथ लाने से गाजा में भी शांति व्यवस्था स्थापित करने में मदद मिलेगी। ऐसा इसलिए क्योंकि गाजा में इजरायली हमलों के खिलाफ मुसलमान देश एकजुट रहे हैं।

कजाखस्तान भी मुस्लिम बहुल देश, पर क्यों नहीं है कट्टरता

कज़ाखस्तान की आबादी लगभग 2 करोड़ है और यह क्षेत्रफल की दृष्टि से दुनिया के सबसे बड़े देशों में से एक है। हालांकि इसकी अधिकांश आबादी मुस्लिम है, लेकिन यह आधिकारिक तौर पर इस्लामिक देश नहीं है। जैसा बहरीन, मोरक्को और संयुक्त अरब अमीरात के साथ है, जिन्होंने 2020 में अब्राहम अकॉर्ड में शामिल होने का फैसला लिया था। यही नहीं कजाखस्तान को अपेक्षाकृत उदारवादी देश माना जाता है। अन्य इस्लामिक देशों के मुकाबले सोवियत से अलग होने वाले मुल्क मुस्लिम बहुल तो हैं, लेकिन कट्टरता वहां नहीं है।

कजाकिस्तान का क्या संबंध है?

कजाकिस्तान मध्य एशिया का एक बड़ा देश है. यहां की आबादी का 70 फीसदी मुस्लिम है. लेकिन अब्राहम समझौते पर अगर यह देश हस्ताक्षर करता है तो भी ये कुछ नया नहीं होगा. ऐसा इसलिए क्योंकि कजाकिस्तान के 1992 से ही इजरायल के साथ अच्छे संबंध रखे हैं. वहां दूतावास हैं, व्यापार होता है, कोई दुश्मनी नहीं. ऐसे में यह कदम नया संबंध बनाने का नहीं, बल्कि पुराने को मजबूत करने का है.

ट्रंप ने कहा कि उन्होंने इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और कजाकिस्तान के राष्ट्रपति कासिम-जोमार्ट टोकायेव से फोन पर बात की. टोकायेव गुरुवार को व्हाइट हाउस में ट्रंप से मिले थे, क्योंकि वहां सेंट्रल एशिया के पांच देशों के नेताओं का समिट था. टोकायेव ने कहा, ‘यह हमारे देश की नीति का प्राकृतिक हिस्सा है. हम संवाद, सम्मान और स्थिरता चाहते हैं.’ एक्सियोस की रिपोर्ट के मुताबिक ट्रंप ने इसे ‘शक्ति का क्लब’ कहा और बोले, ‘यह पहला देश है, कई और आएंगे.’
कजाकिस्तान अब क्यों करेगा समझौता?

    न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक कजाकिस्तान के राष्ट्रपति टोकायेव का कहना है कि इससे इजरायल के साथ व्यापार और सहयोग बढ़ेगा.

    कजाकिस्तान के पास यूरेनियम और दुर्लभ खनिजों के बड़े भंडार हैं. गुरुवार को कजाकिस्तान ने महत्वपूर्ण खनिजों के क्षेत्र में अमेरिकी सरकार के साथ एक मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग पर हस्ताक्षर किया. इसमें कजाकिस्तानका भी हित है. वह नहीं चाहता कि चीन और रूस के बीच फंसा रहे.

    कजाकिस्तान अमेरिका को खुश करके निवेश और तकनीक हासिल करना चाहता है. इसका एक उदाहरण भी दिखा जब कजाकिस्तान के राष्ट्रपति ने ट्रंप के सामने उनकी तारीफ की. उन्होंने कहा, ‘आप एक महान राजनेता हैं जिन्हें अमेरिका की नीति में सामान्य ज्ञान और परंपराओं को वापस लाने के लिए स्वर्ग से भेजा गया है.’

    ट्रंप के लिए यह राजनीतिक जीत है. गाजा युद्ध के बाद इजरायल दुनिया में अकेला पड़ गया था. ट्रंप पहले भी कह चुके हैं, ‘मेरा लक्ष्य इजरायल को फिर से मजबूत बनाना है.’

किसको क्या फायदा होगा?

    ट्रंप कार्यकाल का यह पहला समझौता होगा. ऐसे में इजरायल की दुनिया में साख बढ़ेगी. दूसरे मुस्लिम देशों से समर्थन की भी उम्मीद है.
    कजाकिस्तान अमेरिका के कहने पर यह समझौता करेगा. ऐसे में अमेरिका से आर्थिक मदद, इजरायल से कृषि, वाटर मैनेजमेंट और साइबर टेक्नोलॉजी मिलने की उम्मीद है.
    ट्रंप कजाकिस्तान से ये समझौता कराकर खाता खोलना चाहते हैं. ये सऊदी अरब और सीरिया जैसे बड़े देशों को समझौते पर लाने का रास्ता बनेगा. सऊदी का क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और सीरिया के राष्ट्रपति नवंबर में अमेरिका पहुंचेंगे.
    हालांकि इसे एक ज्यादा बड़ा कदम इसलिए भी नहीं माना जा रहा है. क्योंकि कजाकिस्तान और इजरायल पहले से ही एक दूसरे को मान्यता देते हैं. ये समझौता प्रतीकात्मक होगा, लेकिन कोई नया रास्ता नहीं खुलेगा.

 

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