भोपाल से नहीं मिली अनुमति, ऑफिस में फर्नीचर के बिना चटाई पर काम करने को मजबूर एजीएम

ग्वालियर
 सरकारी दफ्तरों में समानता की बात अभी भी सिर्फ कागजों तक सीमित नजर आती है ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं कि दलित वर्ग से आने वाला एक अधिकारी अपने दफ्तर में चटाई पर बैठ कर काम करने को मजबूर है. पदस्थापना के करीब डेढ़ साल बाद भी ग्वालियर में भवन विकास निगम के सहायक महाप्रबंधक सतीश कुमार डोंगरे को अपने दफ्तर में कुर्सी टेबल तक नहीं मिली है.

जातिगत भेदभाव या अनदेखी!

ग्वालियर में मध्य प्रदेश भवन विकास निगम के दफ्तर में कभी जाना हो और वहां जमीन पर बैठ कर काम करते एक अधिकारी दिखे तो चौंकियेगा नहीं, क्योंकि ये अधिकारी हैं यहां पदस्थ सहायक महाप्रबंधक सतीश कुमार डोंगरे. इनके अधिकारियों ने ही इनका हाल बेहाल कर रखा है, यह सरकारी अफसर अपने दफ्तर में अन्य अधिकारियों से सिफर जमीन पर बैठकर काम करते हैं. लेकिन ये कोई शौक नहीं है बल्कि ये उनके साथ हो रहे भेदभाव की मिसाल है. सतीश कुमार डोंगरे भी अपने वरिष्ठों के इस व्यवहार से दुखी हैं.

चटाई पर बैठ काम निपटा रहे सहायक महाप्रबंधक

ग्वालियर के गोविंदपुरी इलाके में स्थित मध्य प्रदेश भवन विकास निगम के दफ्तर में पहुंचा तो पता चला कि यह ऑफिस किराए के भवन में संचालित है. लेकिन चौंकाने वाली बात तब सामने आई जब इस दफ्तर में पदस्थ सहायक महाप्रबंधक अपने केबिन की जगह ऑफिस की जमीन पर चटाई बिछाए फाइलों का काम निपटाते दिखे और जब उनसे इसके पीछे का कारण पूछा तो जवाब बेहद हैरान करने वाला था.

जातिगत भेदभाव और षड्यंत्र का आरोप

भवन विकास निगम के सहायक महाप्रबंधक सतीश कुमार डोंगरे ने बताया कि "2023 में उनकी पदस्थापना बालाघाट जिले में थी लेकिन उनके उच्च अधिकारियों ने षड्यंत्र के तहत झूठा प्रकरण बनाकर पद से हटवा दिया लेकिन उन्होंने न्यायालय की शरण ली और जीत हासिल हुई. जिसके बाद नाखुश हुए वरिष्ठ अधिकारियों ने उन्हें 800 किलोमीटर दूर ग्वालियर में तबादला कर भेज दिया. इतना ही नहीं उन्होंने परेशान करने या उनके मन में जो जातिगत भेदभाव हैं उसके चलते यहां भी ठीक से काम नहीं करने दे रहे हैं."

'साथी अधिकारी को केबिन, मेरे लिए कुर्सी तक नहीं'

सहायक महाप्रबंधक सतीश कुमार डोंगरे का कहना है कि, "इस दफ्तर में आए लगभग डेढ़ साल हो चुका है, यहां 3 अधिकारियों को पद के अनुरूप टेबल कुर्सी की पात्रता है. 2 को यह सुविधा उपलब्ध कराई गई है लेकिन आज तक उन्हें पद के अनुरूप पात्रता के हिसाब से बैठने के लिए एक्जीक्यूटिव कुर्सी और एग्जीक्यूटिव टेबल नहीं दिया गया है. जबकि उनके समकक्ष साथी अक्षय गुप्ता हैं जो सामान्य वर्ग से आते हैं उन्हें अटैच लेटबाथ के एक साथ केबिन दिया गया है जिसमें उन्हें पात्रता के हिसाब सभी सुविधाएं दी गई हैं. वहीं मैं अनुसूचित जाति वर्ग से आता हूं और मेरे पास बैठने के लिए कुछ नहीं है. मैं चटाई पर बैठ कर अपना ऑफिस का काम और फाइलें निपटाते हैं."

सभी के लिए व्यवस्था, डोंगरे की उपेक्षा!

सतीश कुमार डोंगरे का यह भी कहना है कि "उप महाप्रबंधक के द्वारा कई बार कुर्सी टेबल की डिमांड भेजी गई है क्योंकि दफ्तर में 8 अधिकारी कर्मचारी पदस्थ हैं लेकिन यहां सिर्फ 4 टेबल कुर्सी हैं. जिन पर सभी लोग कहीं ना कहीं बैठ जाते हैं लेकिन डोंगरे का आरोप है कि उनके साथ उपेक्षा होती है. उन्हें बैठने के लिए स्थान तक नहीं दिया गया है इसलिए उन्हें मजबूरी में नीचे ही बैठना पड़ता है."

भोपाल में बैठे अधिकारियों पर लगाया है आरोप

सतीश कुमार डोंगरे का मानना है कि "डिमांड भेजने के बाद भी भोपाल से मानव संसाधन विभाग द्वारा उसे पूरा नहीं किया जा रहा है. ऐसे में उन्हें लगता है कि या तो वहां बैठे अधिकारी उनके प्रति जातिगत भेदभाव रखते हैं या पूर्व से किसी बात को लेकर कुंठित हैं."

उच्च अधिकारी बोले-कुर्सी टेबल के लिए नहीं है फंड

इन हालातों में एक महत्वपूर्ण सरकारी ऑफिस में काम कर रहे सतीश डोंगरे पिछले लगभग डेढ़ साल से इस तरह से अपमान का घूंट पी रहे हैं. सतीश कुमार डोंगरे कहते हैं कि "जब लोग दफ्तर में आते हैं तो उन्हें जमीन पर बैठा देखते हैं तो वे खुद को उपेक्षित महसूस करते हैं. इस मामले में मध्य प्रदेश भवन विकास निगम ग्वालियर के अतिरिक्त महाप्रबंधक अच्छेलाल अहिरवार से बात की गई तो उनका कहना था कि "कुर्सी टेबल के लिए भोपाल डिमांड भेज दी है जब उसके लिए फंड आएगा तब ही फर्नीचर उपलब्ध करा पाएंगे."

इन हालातों से ये बात तो साफ है कि, पढ़ाई लिखाई कर अपनी मेहनत से अधिकारी का पद पाने वाले 2 अफसरों को अलग-अलग व्यवस्थाए दी जाएं तो यह भेदभाव का संकेत है लेकिन ताज्जुब इस बात का है कि जिस प्रदेश में विकास के प्रोजेक्ट्स के नाम पर हजारों करोड़ों रुपये सेंक्शन हो जाते हैं वहां 18 महीने से एक अधिकारी को कुर्सी टेबल के लिए फंड नहीं है. 

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