कांग्रेस ने विधायक निर्मला सप्रे की सदस्यता समाप्त करने के लिए फिर खोला कानूनी मोर्चा

भोपाल
सागर जिले के बीना विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतीं निर्मला सप्रे की सदस्यता समाप्त करवाने के लिए कांग्रेस विधायक दल ने फिर न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। दल-बदल कानून के तहत इसे हाई कोर्ट जबलपुर में चुनौती दी गई है। दरअसल, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने सप्रे के भाजपा में जाने की घोषणा और पार्टी विरोधी गतिविधियों में संलग्न होने को आधार बनाकर हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ में याचिका लगाई थी, जिसमें विधानसभा अध्यक्ष द्वारा दल-बदल कानून के अंतर्गत कार्रवाई नहीं करने को आधार बनाया गया था।

विधानसभा सचिवालय ने क्षेत्राधिकार के निर्धारण का मामला उठा दिया, जिस पर इंदौर खंडपीठ के क्षेत्राधिकार में मामला नहीं आने को आधार बनाकर याचिका खारिज कर दी। निर्मला सप्रे की पार्टी विरोधी गतिविधियों के आधार पर विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर को दल-बदल कानून के तहत कार्रवाई करने का आवेदन दिया था।
 
नियमानुसार 90 दिन में इसका निराकरण होना चाहिए लेकिन मामला खिंचता गया तो फिर सिंघार ने हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ में याचिका दायर करके निर्देश देने का अनुरोध किया था। विधानसभा सचिवालय ने क्षेत्राधिकार का मामला उठाते हुए पहले इसका निर्धारण करने का अनुरोध किया। हाई कोर्ट ने अब यह निर्धारित कर दिया कि यह मामला उनके क्षेत्राधिकार में नहीं आता है। सचिवालय के अधिकारियों का कहना है कि सप्रे सागर जिले की बीना विधानसभा सीट से विधायक हैं, जो हाई कोर्ट जबलपुर के क्षेत्राधिकार में आता है। न्यायालय के निर्णय पर अब सिंघार ने हाई कोर्ट जबलपुर में याचिका दायर की है।
 
भाजपा के कार्यक्रमों में होती हैं शामिल
निर्मला सप्रे ने भले ही रिकार्ड पर यह स्वीकार नहीं किया कि वह भाजपा की सदस्यता ले चुकी हैं पर लगातार पार्टी के कार्यक्रमों में शामिल होती रही हैं। उन्होंने लोकसभा चुनाव के दौरान सागर जिले के राहतगढ़ में आयोजित एक सभा में मुख्यमंत्री के समक्ष भाजपा के मंच पर आकर पार्टी में शामिल होने की घोषणा की थी लेकिन विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र नहीं दिया।

दल-बदल किया है कार्रवाई हो
नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने कहा कि सप्रे ने दल-बदल किया है। वह भाजपा की बैठकों में आ-जा रही हैं, जिसके प्रमाण उपलब्ध हैं। अब इसे लंबा खींचने की आवश्यकता नहीं है। दल-बदल कानून के तहत उनकी सदस्यता समाप्त कर छह वर्ष तक चुनाव लड़ने पर रोक लगाई जानी चाहिए पर भाजपा उन्हें बचा रही है, क्योंकि इसके पहले रामनिवास रावत का इस्तीफा कराकर उन्हें उपचुनाव लड़ाया था, जिसमें वह हार गए। पार्टी इससे डरी हुई है, इसलिए कानूनी प्रक्रिया में प्रकरण को उलझाकर रखना चाहिए।

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