भारत ने तोड़ी परंपरा: इस बार गणतंत्र दिवस के मुख्य अतिथि यूरोपीय कमीशन व परिषद के अध्यक्ष

नई दिल्ली

अगले साल गणतंत्र दिवस परेड में भारत दुनिया की एक सबसे ताकतवर हस्ती को आमंत्रित करने वाला है. इसमें न तो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का नाम है और न ही रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का. इसमें फ्रांस, इंग्लैंड या जर्मनी जैसे सुपरपावर के हेड का भी नाम नहीं है. ये भी स्वाभाविक है कि इसमें चीन के राष्ट्रपति का भी नाम नहीं ही है. ऐसे में ये ताकतवर हस्तिंयां कौन हैं. तो उनके नाम हैं- उर्सुला वॉन डेर लेयेन और एंटोनियो कोस्टा. भारत पहली बार परंपरा से हटकर इन्हें आमंत्रित कर रहा है. लेयेन यूरोपीय कमीशन की अध्यक्ष हैं जबकि कोस्टा यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक औपचारिक निमंत्रण और स्वीकृति की प्रक्रिया चल रही है, जिसके पूरा होने पर नई दिल्ली और ब्रुसेल्स द्वारा जल्द ही आधिकारिक घोषणा की जाएगी. भारत के नजरिये में गणतंत्र दिवस का मुख्य अतिथि आमंत्रण अत्यंत प्रतीकात्मक महत्व रखता है. नई दिल्ली रणनीति और आतिथ्य का संतुलन बनाते हुए मुख्य अतिथि का चयन करती है, जिसमें सामरिक-कूटनीतिक कारण, व्यापारिक हित और अंतरराष्ट्रीय भू-राजनीति निर्णायक भूमिका निभाते हैं.

इस बार ईयू नेतृत्व को आमंत्रित करना भारत-ईयू संबंधों में तेजी से आए उभार का स्पष्ट संकेत है, विशेषकर फरवरी 2025 से जब ईयू के कॉलेज ऑफ कमिश्नर्स ने भारत का दौरा किया था. 27 सदस्यीय ईयू के साथ भारत के संबंध पिछले कुछ महीनों में उल्लेखनीय रूप से मजबूत हुए हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व वाली प्रशासन की अनिश्चित नीतियों के बीच ईयू ने 20 अक्टूबर को एक नया सामरिक एजेंडा अपनाया, जिसमें भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों को उच्च स्तर पर ले जाने का संकल्प है.
व्यापार समझौते पर वार्ता

इसमें भारत-ईयू मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) की चल रही वार्ताओं को अंतिम रूप देना, प्रौद्योगिकी, रक्षा-सुरक्षा और जन-संपर्क सहयोग को गहरा करना शामिल है. जनवरी में ईयू नेताओं के भारत आने पर दिल्ली में ही भारत-ईयू लीडर्स समिट आयोजित होगा, जो मूल रूप से 2026 की शुरुआत में निर्धारित था. इससे दोनों पक्षों के वार्ताकारों पर दिसंबर तक एफटीए को पूरा करने का दबाव बढ़ गया है – यह प्रतिबद्धता फरवरी में हुई आर्थिक साझेदारी बैठकों में ली गई थी.

गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि के रूप में ईयू नेतृत्व की उपस्थिति न केवल कूटनीतिक जीत होगी, बल्कि वैश्विक मंच पर भारत की बढ़ती भूमिका को भी रेखांकित करेगी. यह आमंत्रण भारत की ‘मल्टी-अलाइनमेंट’ नीति का हिस्सा है, जिसमें वह अमेरिका, रूस और यूरोप जैसे सभी प्रमुख शक्ति केंद्रों के साथ संतुलित संबंध बनाए रखता है. ट्रंप प्रशासन की अनिश्चितता के बीच ईयू के साथ गठजोड़ भारत को व्यापार, निवेश और रक्षा प्रौद्योगिकी में नई संभावनाएं देगा.

एफटीए पूरा होने पर भारत को ईयू बाजार में बेहतर पहुंच मिलेगी, जो उसके निर्यात को बढ़ावा देगी. साथ ही, रक्षा और डिजिटल प्रौद्योगिकी में सहयोग से भारत की ‘आत्मनिर्भर भारत’ पहल को बल मिलेगा. जनवरी समिट में दोनों पक्ष जलवायु परिवर्तन, डिजिटल गवर्नेंस और इंडो-पैसिफिक रणनीति पर भी चर्चा करेंगे.

यह ऐतिहासिक आमंत्रण भारत-ईयू साझेदारी के नए युग की शुरुआत है. जब 26 जनवरी 2026 को राजपथ पर ईयू झंडा लहराएगा, तो यह न केवल राजनयिक सफलता होगी, बल्कि वैश्विक सहयोग की नई मिसाल भी कायम करेगा. दोनों पक्षों के बीच विश्वास और सहयोग की यह यात्रा अब निर्णायक मोड़ पर है.

 

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