जब खैरागढ़ बोला — बनना है छत्तीसगढ़! राज्य स्थापना की प्रेरक कहानी

खैरागढ़

आज छत्तीसगढ़ अपनी स्थापना के 25 साल पूरे कर रहा है. लेकिन इस खास मौके पर एक सवाल फिर गूंजता है,आख़िर ‘छत्तीसगढ़’ नाम आया कहां से? यह कहानी सिर्फ एक नाम की नहीं, बल्कि इस मिट्टी की असली पहचान की है और इसकी शुरुआत होती है खैरागढ़ से, जहां करीब सन 1487 में पहली बार “छत्तीसगढ़” शब्द बोला गया था.

उस दौर में खैरागढ़ (जिसे तब खोलवा कहा जाता था) पर राजा लक्ष्मीनिधि कर्ण राय का शासन था. आसपास के इलाकों में पिण्डारियों का आतंक फैला था. हर जगह लूट, डर और अराजकता थी. लोग निराश थे, वीरता जैसे सो गई थी. ऐसे कठिन समय में राजा के दरबार में एक कवि थे दलपत राव. वे चारण परंपरा के कवि थे, जो अपने शब्दों से वीरता जगाने के लिए जाने जाते थे. एक दिन उन्होंने राजदरबार में खड़े होकर राजा से कहा —

    “लक्ष्मीनिधि कर्ण राय सुनो, चित्त दे —
    गढ़ छत्तीस में न गढैया रही,
    मर्दानी रही न मर्दन में,
    कोउ न ढाल अढैया रही.”

यही वो क्षण था जब “छत्तीसगढ़” शब्द पहली बार सुना गया. कवि दलपत राव ने इन पंक्तियों में न सिर्फ़ उस समय की स्थिति बयान की, बल्कि राजा के अंदर सोई हुई वीरता को भी जगाया. कहा जाता है कि कविता सुनने के बाद राजा में नया जोश भर गया. उन्होंने राज्य को संगठित किया, नए किले बनवाए और खोलवा को छोड़कर खैरागढ़ को अपनी राजधानी बनाया. यहीं से छत्तीसगढ़ की पहचान की शुरुआत हुई एक ऐसी पहचान जो आज भी हर छत्तीसगढ़िया के गर्व की बात है. इस कहानी को सिर्फ़ लोककथाओं में ही नहीं, बल्कि स्कूल की किताबों में भी दर्ज किया गया है. छत्तीसगढ़ बोर्ड की कक्षा 6वीं से 8वीं की सामाजिक विज्ञान की किताबों में लिखा है कि कवि दलपत राव ने ही पहली बार “छत्तीसगढ़” शब्द का प्रयोग किया था. किताबों में बताया गया है कि यह वही समय था जब राजा लक्ष्मीनिधि कर्ण राय के शासन में इस क्षेत्र को एक नाम मिला छत्तीसगढ़, जो आगे चलकर पूरे प्रदेश की पहचान बन गया. इतिहासकारों के अनुसार बाद में मराठों और अंग्रेजों के दौर में “छत्तीसगढ़” शब्द का औपचारिक रूप से इस्तेमाल दस्तावेज़ों में होने लगा. लेकिन इस नाम की जड़ें उसी कविता में हैं, जो खैरागढ़ के दरबार में गूँजी थी.

आज जब छत्तीसगढ़ अपना 25वां स्थापना दिवस मना रहा है, तो यह कहानी हमें याद दिलाती है कि यह नाम सिर्फ़ भौगोलिक पहचान नहीं, बल्कि एक भावना है वीरता, संस्कृति और अस्मिता की. खैरागढ़ की वह धरती, जहां एक कवि की आवाज ने इतिहास लिखा था, आज भी उसी गौरव की गवाही देती है.

admin

Related Posts

स्वास्थ्य मंत्री पहुंचे जांजगीर-चांपा अस्पताल, नई सुविधाओं का किया शुभारंभ

रायपुर, स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने आज जिला चिकित्सालय जांजगीर-चांपा का औचक निरीक्षण किया। इस अवसर पर स्वास्थ्य विभाग के सचिव  अमित कटारिया, संचालक संजीव झा एवं सहायक संचालक…

स्कूलों को चेतावनी: बच्चों को सांता क्लॉज बनाने के लिए मजबूर न करें

श्री गंगानगर श्रीगंगानगर जिले के निजी स्कूलों में क्रिसमस के अवसर पर बच्चों को सांता क्लॉज की ड्रेस पहनाने के लिए अभिभावकों पर दबाव बनाने की शिकायतों के बाद शिक्षा…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

धर्म

नववर्ष पर भक्तों के लिए बड़ी खुशखबरी, तिरुपति बालाजी मंदिर में वैकुंठ द्वार दर्शन की व्यवस्था

नववर्ष पर भक्तों के लिए बड़ी खुशखबरी, तिरुपति बालाजी मंदिर में वैकुंठ द्वार दर्शन की व्यवस्था

पौष पूर्णिमा 2025: 2 या 3 जनवरी—कब मनाई जाएगी, शुभ समय और पूजा का पूरा विधान

पौष पूर्णिमा 2025: 2 या 3 जनवरी—कब मनाई जाएगी, शुभ समय और पूजा का पूरा विधान

सूर्य–चंद्र ग्रहण की पूरी गाइड: पंचांग की मान्यताएं और वैज्ञानिक तथ्य

सूर्य–चंद्र ग्रहण की पूरी गाइड: पंचांग की मान्यताएं और वैज्ञानिक तथ्य

आज का राशिफल 23 दिसंबर 2025: हनुमान जी की विशेष कृपा इन राशियों पर, किसकी चमकेगी किस्मत?

आज का राशिफल 23 दिसंबर 2025: हनुमान जी की विशेष कृपा इन राशियों पर, किसकी चमकेगी किस्मत?

पुराणों में अधिकमास का महत्व क्या है? जानिए क्यों माना जाता है यह पुण्यकाल

पुराणों में अधिकमास का महत्व क्या है? जानिए क्यों माना जाता है यह पुण्यकाल

शुक्र का धनु में गोचर बना रहा है 100 साल बाद का दुर्लभ समसप्तक योग, इन 4 राशियों की खुलेंगी किस्मत

शुक्र का धनु में गोचर बना रहा है 100 साल बाद का दुर्लभ समसप्तक योग, इन 4 राशियों की खुलेंगी किस्मत