भारतीय न्यायपालिका को विदेशी उदाहरणों की ज़रूरत क्यों? CJI-डिज़िग्नेट सूर्यकांत ने उठाया अहम सवाल

नई दिल्ली 
भारत के अगले मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत ने शनिवार को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्वदेशी न्यायशास्त्र को अपनाने की दिशा में बल दिए जाने को एक स्वाभाविक कदम बताया। उन्होंने कहा कि 75 वर्षों में न्यायालय ने जो मजबूत और आधिकारिक न्याय-निर्णय का संग्रह बनाया है, उसके बाद अब समय आ गया है कि सर्वोच्च न्यायालय अपनी स्वयं की न्यायिक विचारधारा को गहरा करे।
 
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने स्पष्ट किया कि भारतीय न्यायपालिका के लिए अपने स्वयं के दर्शन पर निर्भर रहना क्यों आवश्यक है। उन्होंने कहा, "सुप्रीम कोर्ट के हजारों ऐतिहासिक निर्णय देने के 75 वर्षों के बाद जब हमारे निर्णयों को अन्य विभिन्न क्षेत्राधिकारों द्वारा उद्धृत किया जा रहा है और जब हमने अपने दम पर न्यायिक ज्ञान का भंडार अर्जित कर लिया है। हमें अपने देश से संबंधित किसी भी मुद्दे पर राय बनाते समय दूसरे देशों के निर्णयों को क्यों देखना चाहिए?"

उन्होंने जोर दिया कि भौगोलिक, स्थानीय, सामाजिक, और राजनीतिक परिदृश्य जैसे महत्वपूर्ण कारक अन्य देशों में भिन्न हो सकते हैं, इसलिए भारत को अपनी परिस्थितियों के अनुरूप स्वयं का न्यायशास्त्र विकसित करने की आवश्यकता है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि CJI के रूप में उनकी तत्काल प्राथमिकताओं में लंबी अवधि से लंबित मामलों को निपटाना और संस्थागत सुधारों को आगे बढ़ाना शामिल है। उनकी प्राथमिकता विशेष रूप से सात और नौ न्यायाधीशों वाली संवैधानिक पीठों का गठन करना है, ताकि महत्वपूर्ण मामलों का शीघ्र निपटारा किया जा सके।

उन्होंने लंबित मामलों की संख्या (90,000 तक) को स्वीकार किया लेकिन वह इसे लेकर आशावादी हैं। उन्होंने उदाहरण दिया कि हाल ही में न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता के साथ दिए गए उनके एक निर्णय में ऐसे निर्देश थे, जिससे अंततः 1,000 मामले निपटाए जा सकेंगे। उनका लक्ष्य लंबित मामलों को शून्य तक लाना नहीं है, लेकिन स्थिति को प्रबंधनीय बनाना है।

उन्होंने कहा कि वह सर्वोच्च न्यायालय में सभी रिक्तियों को भरेंगे, हालांकि उन्होंने महिला प्रतिनिधित्व पर अभी विचार नहीं किया है। उन्होंने कहा कि भारत सरकार का कर मामलों के प्रति व्यावहारिक दृष्टिकोण है और 5 करोड़ के लिए मुकदमेबाजी नहीं लड़ी जानी चाहिए। उन्होंने अंतिम राय बनाने के लिए एक ऐसे तंत्र के विकास की आवश्यकता पर बल दिया जिससे समय बर्बाद न हो।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने CJI कार्यालय से जुड़े दबावों और सोशल मीडिया की आलोचना पर भी अपनी राय रखी। उन्होंने कहा कि CJI के पद के लिए व्यक्ति को सोशल मीडिया की टिप्पणियों से अलग रहने की आवश्यकता होती है। उन्होंने जोर देकर कहा, "न्यायाधीश या CJI दबाव में नहीं आ सकते और नहीं आना चाहिए। मैं कभी दबाव में नहीं रहा। एकमात्र तरीका है कि सोशल मीडिया की टिप्पणियों को अनदेखा करें।"

 

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