उच्च शिक्षा विभाग ने वीआईटी विश्वविद्यालय प्रकरण में दिखाई कड़ाई

उच्च शिक्षा विभाग का वीआईटी विश्वविद्यालय मामले में कड़ा रुख

वीआईटी सीहोर की अव्यवस्थाओं पर जांच समिति की रिपोर्ट, विश्वविद्यालय से 7 दिन में जवाब तलब

भोपाल

राज्य शासन के उच्च शिक्षा विभाग ने, सीहोर जिले में स्थित निजी वीआईटी विश्वविद्यालय में मेस व्यवस्था, छात्रावास प्रबंधन, स्वास्थ्य सुविधाओं और अनुशासन तंत्र से जुड़ी गंभीर अनियमितताओं पर कड़ा रुख अपनाया है। जांच समिति की रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद विभाग ने विश्वविद्यालय प्रशासन से 7 दिनों में बिंदुवार जवाब मांगा है। विभाग ने स्पष्ट कहा है कि छात्रों के स्वास्थ्य, सुरक्षा और बुनियादी सुविधाओं पर किसी भी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

मेस भोजन से 35 छात्र-छात्राएँ बीमार, पेयजल की भी समस्या

विश्वविद्यालय प्रबंधन ने समिति के समक्ष यह स्वीकार किया है कि 14 से 24 नवंबर के बीच 23 छात्र और 12 छात्राएँ यानी कुल 35 विद्यार्थी पीलिया से पीड़ित हुए। जांच समिति ने पुष्टि की है कि भोजन और पेयजल की गुणवत्ता पर नियंत्रण कमजोर था तथा कई दिनों तक शिकायतें आने के बावजूद उचित सुधार नहीं किया गया। समिति ने यह भी उल्लेख किया कि छात्र-छात्राओं ने प्रबंधन से पेयजल में दुर्गंध आने की शिकायत की थी, परंतु प्रबंधन द्वारा इस पर समय रहते ठोस कार्रवाई नहीं की गई।

विश्वविद्यालय परिसर में तानाशाही जैसी व्यवस्था

जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि परिसर में प्रबंधन एकतरफा और तानाशाही रवैया अपनाता है। रिपोर्ट में उल्लेख है कि कर्मचारियों से प्रतिरोध या शिकायतें सुनने की अनुमति नहीं होती और छात्रों पर अनुशासन के नाम पर अनावश्यक दबाव बनाया जाता है। समिति ने उल्लेख किया है कि सीहोर जिले के मुख्य चिकित्सा स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO )और स्वास्थ्य अधिकारियों को विश्वविद्यालय के मुख्य प्रवेश द्वार पर दो घंटे तक रोककर रखा गया, जबकि वे स्थितियों का निरीक्षण करने आए थे।

छात्रों में असुरक्षा और अविश्वास का भाव व्याप्त

समिति के अनुसार विश्वविद्यालय परिसर का वातावरण ऐसा है जहाँ छात्र स्वयं को सुरक्षित और स्वतंत्र महसूस नहीं करते हैं। अनुशासन तंत्र भय आधारित है, जिसके कारण छात्र अपनी समस्याएँ खुलकर नहीं बता पाते हैं। रिपोर्ट बताती है कि शिकायतें बढ़ती रहीं, परंतु प्रशासन ने छात्रों को शांत करवाने या माहौल सुधारने की दिशा में कोई रचनात्मक कदम नहीं उठाया। जब स्थिति बिगड़ गई और छात्र आंदोलन की ओर बढ़े, तब भी प्रबंधन द्वारा प्रभावी नियंत्रण या संवाद स्थापित नहीं किया गया।

 अव्यवस्थित स्वास्थ्य केंद्र और बीमारी नियंत्रण में लापरवाही

समिति ने पाया कि विश्वविद्यालय परिसर स्थित स्वास्थ्य केंद्र में बीमारी फैलने की जानकारी होने के बावजूद समय पर उपचार, परीक्षण और रिपोर्टिंग की प्रक्रिया सक्रिय नहीं की गई। स्वास्थ्य केंद्र स्टाफ केवल औपचारिक स्तर पर दवाएँ दे रहा था। बीमारी नियंत्रण के लिए न तो प्रबंधन ने कोई विशेष अभियान चलाया गया और न ही प्रभावित छात्रों की नियमित मॉनिटरिंग की गई।रिपोर्ट में कहा गया है कि बीमारी फैलने की वास्तविक स्थिति विश्वविद्यालय प्रशासन की जानकारी में थी, फिर भी आवश्यक कदम समय पर नहीं उठाए गए।

विभाग ने मांगा बिंदुवार जवाब

उच्च शिक्षा विभाग ने विश्वविद्यालय से मेस के भोजन की गुणवत्ता, पेयजल की शुद्धता और 35 छात्रों के बीमार होने संबंधी पूरी रिपोर्ट, परीक्षण और उपचार विवरण, हॉस्टल प्रबंधन, जलापूर्ति, स्वच्छता और रखरखाव में कमी के कारण तथा अब तक उठाए गए सुधारात्मक कदम, छात्रों की बार-बार की शिकायतों पर समय पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई, अनुशासन के नाम पर छात्रों व कर्मचारियों पर अनावश्यक दबाव डालने और शिकायतों को दबाने के आरोपों पर स्पष्टीकरण, CMHO और स्वास्थ्य अधिकारियों को गेट पर रोके जाने की पूरी जानकारी और जिम्मेदार व्यक्तियों की पहचान, बीमारी फैलने के बाद स्वास्थ्य केंद्र और प्रबंधन द्वारा अपनाए गए नियंत्रण उपायों का विवरण आदि समस्त विद्यार्थी हितों से जुड़े विषयों पर 7 दिनों के अंदर स्पष्टीकरण मांगा है। उच्च शिक्षा विभाग ने चेतावनी दी है कि यदि उत्तर संतोषजनक नहीं रहा तो निजी विश्वविद्यालय अधिनियम के तहत कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

 

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