महत्वपूर्ण निर्णय: पत्नी का तलाक का हक सुरक्षित, मायके में रहने से प्रभावित नहीं होगा

बिलासपुर

हाईकोर्ट ने मुस्लिम विवाह कानून से जुड़े एक मामले में अहम फैसला दिया है. कोर्ट ने साफ कहा है कि यदि पति लगातार दो वर्षों तक पत्नी का भरण-पोषण नहीं करता है, तो पत्नी को तलाक का अधिकार मिलेगा, भले ही वह अपने मायके में ही क्यों न रह रही हो. हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने यह टिप्पणी करते हुए फैमिली कोर्ट के तलाक आदेश को आंशिक रूप से सही ठहराया है.

दरअसल, यह मामला कोरिया जिले के मनेंद्रगढ़ का है, जहां 30 सितंबर 2015 को मुस्लिम रीति-रिवाज से शादी हुई थी. विवाह के बाद पत्नी केवल 15 दिन ससुराल में रही और पारिवारिक विवाद के चलते मई 2016 से मायके में रहने लगी. पत्नी का आरोप था कि पति ने उसके नाम की 10 लाख रुपए की एफडी तुड़वाने का दबाव बनाया, जिसके बाद उसने घरेलू हिंसा, 498-ए और भरण-पोषण से जुड़े मामले दर्ज कराए फैमिली कोर्ट ने इन तथ्यों के आधार पर विवाह विच्छेद का आदेश दिया था.

हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि मुस्लिम विवाह विच्छेद अधिनियम, 1939 की धारा 2(ii) में कहीं भी यह शर्त नहीं है कि पत्नी पति के साथ ही रह रही हो. कोर्ट ने रिकॉर्ड के आधार पर माना कि वर्ष 2016 से करीब आठ वर्षों तक पत्नी को कोई भरण-पोषण नहीं दिया गया, जो तलाक के लिए पर्याप्त आधार है.

हालांकि, कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के उस निष्कर्ष को पलट दिया जिसमें पति पर पत्नी की संपत्ति हड़पने या उसके कानूनी अधिकारों में बाधा डालने का आरोप स्वीकार किया गया था. हाईकोर्ट ने कहा कि केवल एफडी तुड़वाने की मांग का आरोप पर्याप्त नहीं है, जब तक यह साबित न हो कि वास्तव में पत्नी की संपत्ति का दुरुपयोग किया गया. अंत में हाईकोर्ट ने भरण-पोषण न देने के आधार पर तलाक के आदेश को बरकरार रखते हुए संदेश दिया कि मुस्लिम महिलाओं के भरण-पोषण के अधिकारों की अनदेखी नहीं की जा सकती.

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