टाटा इंस्टीट्यूट के खगोलविदों की खोज बताया सूर्य ग्रहण को लेकर 6,000 साल पहले ऋग्वेद में थी बड़ी जानकारी

नईदिल्ली

दुनिया के सबसे पुराने पूर्ण सूर्य ग्रहण का पता चल गया है. इस ग्रहण का सबसे प्रामाणिक दस्तावेज ऋग्वेद को माना गया है. खगोशास्त्रियों ने ऋग्वेद में बताए गए सबसे प्राचीन पूर्ण सूर्य ग्रहण को ही सबसे पुराना माना है. ये करीब 6000 साल पहले की घटना मानी जा रही है. ऋग्वेद में कई धार्मिक और दर्शनशास्त्र के स्कूलों के कथन लिखे गए हैं.

ये कथन 1500 ईसा पूर्व के आसपास के माने जाते हैं. अन्य सभी धार्मिक ग्रंथों और पुस्तकों की तरह ही ऋग्वेद में भी प्राचीन घटनाओं का जिक्र है. कुछ ग्रंथों में प्राचीन चीजों के बारे में बताया जाता है. लेकिन ऋग्वेद सबसे पुराना है. जिसमें कई बार वर्नल इक्वीनॉक्स (Vernal Equinox) में सूर्य के उगने का जिक्र है. यानी दोपहर में जब सूर्य सीधे सिर के ऊपर होता है.

एक जगह लिखा है कि ये इक्वीनॉक्स ओरियन (Orion) नक्षत्र में हो रहा है, दूसरा प्लीयेडस (Pleiades) में. इस डिस्क्रिप्शन से एस्ट्रोनॉमर्स ने जांच शुरू की. तारीख खोजने लगे. धरती अपनी धुरी पर लहराती हुई घूमती है. इस समय का वर्नल इक्वीनॉक्स पाइसेस नक्षत्र में है. यानी ओरियन 4500 ईसा पूर्व में था और प्लीयेडस 2230 ईसा पूर्व में.

ऋग्वेद में प्राचीन ग्रहण का जिक्र

जर्नल ऑफ एस्ट्रोनॉमिकल हिस्ट्री एंड हेरिटेज में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च के खगोलविद मयंक वाहिया और जापान की नेशनल एस्ट्रोनॉमिकल ऑब्जर्वेटरी के मित्सुरु सोमा ने बताया कि उन्हें एक प्राचीन ग्रहण का उल्लेख मिला है। ऋग्वेद के विभिन्न अंशों में वसंत विषुव के दौरान उगते सूर्य के स्थान का उल्लेख किया गया है, जिसमें एक संदर्भ में बताया गया है कि यह घटना ओरियन में हुई थी, जबकि दूसरे में कहा गया है कि यह प्लीएड्स में हुई थी।

पृथ्वी के धुरी पर घूमने का भी उल्लेख

पृथ्वी के अपनी धुरी पर घूमने के साथ, इन महत्वपूर्ण खगोलीय घटनाओं की सापेक्ष स्थिति भी बदल जाती है। वर्तमान में, वसंत विषुव मीन राशि में है, लेकिन यह लगभग 4500 ईसा पूर्व ओरियन और लगभग 2230 ईसा पूर्व प्लीएड्स में था। इससे खगोलविदों के लिए उस समय अवधि का पता लगाना संभव हुआ है, जब यह घटना घटी थी।

ऋग्वेद में सूर्य ग्रहण के बारे में क्या लिखा है

ग्रहण का वर्णन करने वाले अंशों में घटना का उल्लेख नहीं है। लिखा है कि वे सूर्य के अंधकार और उदासी से “छेदे” जाने और दुष्ट प्राणियों द्वारा सूर्य की “जादुई कलाओं को लुप्त करने” के बारे में बात करते हैं। हालांकि, इनका राहु और केतु की कहानी से कोई लेना-देना नहीं है, क्योंकि वे अधिक आधुनिक मिथक हैं। जबकि, ऋग्वेद उनसे काफी पुराना है। इन उल्लेखों के बाद के अंशों ने खगोलविदों को पूर्ण सूर्य ग्रहण की समय सीमा को भी बताया है, जिससे पता चलता है कि यह घटना शरद विषुव से तीन दिन पहले हुई थी।

सांकेतिक भाषा की स्टडी की भारतीय और जापानी साइंटिस्ट ने

वैज्ञानिकों ने इस बात को माना है कि ऋग्वेद में कई ऐसी बातों का भी जिक्र है, जब वो लिखी भी नहीं गई थी. जहां तक बात है ऋग्वेद की भाषा का तो ये बहुत ज्यादा सांकेतिक है. लेकिन टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च के मयंक वाहिया और जापान के नेशनल एस्ट्रोनॉमिकल ऑब्जरवेटरी के मित्सुरू सोमा ने इसकी स्टडी की है.

ऋग्वेद में सूर्य ग्रहण की असल कहानी कुछ और बताई गई है

इन दोनों ने ही प्राचीनतम सूर्य ग्रहण का जिक्र ऋग्वेद में पाया. इनकी स्टडी जर्नल ऑफ एस्ट्रोनॉमिकल हिस्ट्री एंड हेरिटेज में प्रकाशित हुई है. ऋग्वेद में जो कहानी बताई गई है, वो सामान्य राहू-केतु वाली कहानी से अलग है. ये कहानियां बाद में बनाई गई हैं. सूर्य ग्रहण की वजह ऋग्वेद में अलग लिखी गई है.

ऋग्वेद को लिखने वालों के समय हुई घटना का जिक्र है इसमें

दोनों वैज्ञानिकों ओरियन नक्षत्र के समय वर्नल इक्वीनॉक्स की तारीख खोजनी शुरू की. क्योंकि प्राचीनतम सूर्य ग्रहण इसी दिन हुआ था. यह सबसे पहला लिखित पूर्ण सूर्य ग्रहण माना जाता है. यानी ये तब हुआ था जब ऋग्वेद को लिखने वाले मौजूद थे. उनके सामने ये घटना हुई होगी. इसलिए उन्होंने इस ग्रंथ में लिख दिया.

दो और सभ्यताओं ने भी प्राचीन सूर्य ग्रहण का किया है जिक्र

कुल मिलाकर दोनों वैज्ञानिकों की गणना के मुताबिक सबसे पुराना सूर्य ग्रहण 22 अक्तूबर 4202 ईसा पूर्व और 19 अक्तूबर 3811 ईसा पूर्व के बीच कभी हुआ था. जबि इसके पहले सीरिया में एक क्ले का टैबलेट मिला था, जिसपर सबसे पुराने सूर्य ग्रहण का जिक्र था. ये 1375 से 1223 ईसा पूर्व के बीच की बात बताई जा रही थी. इसके अलावा आयरलैंड में 3340 ईसा पूर्व का सूर्य ग्रहण का रॉक कार्विंग मिली थी.

 

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