हेल्मेट और सीट बेल्ट के इस्तेमाल में रहा सुधार दिख, चौराहों पर यातायात व्यवस्था का बेहाल

बिलासपुर

नए मोटर व्हीकल एक्ट के लागू होने के बाद शहर में यातायात नियमों को लेकर सख्ती बढ़ गई है। हेल्मेट और सीट बेल्ट के इस्तेमाल में तो सुधार दिख रहा है, लेकिन शहर के चौराहों पर यातायात व्यवस्था का हाल बेहद खराब है। यातायात पुलिस चालान काटने में सक्रिय है, लेकिन सड़क पर बेसिक नियमों की अनदेखी हो रही है।

जेब्रा क्रासिंग आधी बनी हुई
चौराहों पर जेब्रा क्रासिंग के नियमों का पालन न होने के कारण पैदल यात्रियों को अपनी जान जोखिम में डालकर सड़क पार करनी पड़ रही है। शहर के कई प्रमुख-चौराहे जैसे नेहरू चौक, महामाया चौक, राजेंद्र नगर चौक और अग्रसेन चौक पर जेब्रा क्रासिंग की हालत खस्ताहाल है। कई स्थानों पर जेब्रा क्रासिंग आधी बनी हुई है, तो कहीं पूरी तरह गायब हो चुकी हैं।

पैदल यात्रियों की सुविधा और सुरक्षा के लिए बनाई गई ये पट्टियां अब दिखावे की चीज बनकर रह गई हैं। वाहन चालक सिग्नल रेड होने पर भी जेब्रा क्रासिंग के ऊपर गाड़ियां खड़ी कर देते हैं, जिससे पैदल यात्रियों के लिए खतरा बढ़ जाता है।

हाथ दिखा कर करते हैं सड़क पार
बिलासपुर के आधा दर्जन प्रमुख चौराहों पर जेब्रा क्रासिंग की खराब स्थिति साफ दिखती है। नेहरू चौक को छोड़कर शहर के किसी भी बड़े चौराहे पर इनका सही तरीके से उपयोग नहीं हो रहा है। महामाया चौक, राजेंद्र नगर चौक और जरहाभाठा चौक जैसे क्षेत्रों में या तो ये गायब हो चुकी हैं वही ट्रैफिक थाने के पास के ज़ेबरा क्रासिंग की स्थिति बेहद खराब हैं।

सरकंडा क्षेत्र में ज़ेबरा क्रासिंग स्पष्ट हैं लेकिन वहां ट्रैफिक लाइट नहीं है। पैदल यात्री इन चौराहों पर अपनी जान जोखिम में डालकर सड़क पार करने को मजबूर हैं। जेब्रा क्रासिंग के नियमों का पालन न होने के कारण लोग भागते हुए या हाथ दिखाकर सड़क पार करते हैं।

यातायात पुलिस की उदासीन
ताचालान काटने और नियमों का सख्ती से पालन कराने के दावे किए जा रहे हैं, लेकिन वास्तविकता अलग है। ट्रैफिक पुलिस द्वारा जेब्रा क्रासिंग पर हो रहे उल्लंघनों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। वाहन चालक रेड सिग्नल के बावजूद जेब्रा क्रासिंग पार कर खड़े हो जाते हैं या ज़ेबरा क्रासिंग पर ही खड़े हो जाते हैं।

जेब्रा क्रासिंग की शिक्षा लेकिन अमल कहां?
स्कूलों में बच्चों को जेब्रा क्रासिंग का महत्व समझाया जाता है। यह बताया जाता है कि सड़क पार करने का यह सबसे सुरक्षित तरीका है। लेकिन जब शहर के प्रमुख चौराहों पर इसका पालन नहीं होता, तो यह शिक्षा व्यर्थ हो जाती है।
यातायात पुलिस को इस दिशा में सख्ती बरतनी होगी। साथ ही चौराहों पर जेब्रा क्रासिंग को पुनर्जीवित करने और इसे सुरक्षित बनाने के लिए कदम उठाने होंगे।

काली और सफेद लाइन ही क्यों?
सड़कों पर बनाई जाने वाली जेब्रा क्रासिंग काले और सफेद रंग की धारियों से बनती हैं। काली सड़कों पर सफेद रंग की धारियां आसानी से नजर आती हैं, जिससे पैदल यात्रियों को सड़क पार करते समय सुरक्षा मिलती है। इस डिजाइन को चुनने से पहले कई रंगों पर विचार किया गया था, लेकिन सफेद धारियां सबसे प्रभावी साबित हुईं।
कई देशों में इसके डिजाइन और रंगों में बदलाव किया गया है, लेकिन भारत में पारंपरिक काली और सफेद धारियां ही प्रचलित हैं। इन धारियों का उपयोग सिर्फ दृश्यता के लिए ही नहीं, बल्कि यातायात नियंत्रण के लिए भी किया जाता है। वाहन चालकों के लिए यह संकेत है कि उन्हें कहां रुकना है और पैदल यात्रियों के लिए यह बताता है कि उन्हें सड़क पार करने का सुरक्षित स्थान कहां है।

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